अश्वकंचुकी रस को घोड़ाचोली और अश्वचोली रस भी कहा जाता है. यह पारा-गंधक के अलावा दूसरी जड़ी-बूटियों के मिश्रण से बनी शास्त्रीय आयुर्वेदिक रसायन औषधि है. तीव्र विरेचक होने से इसे पेट साफ़ करने के अलावा कई दुसरे रोगों में भी इस्तेमाल किया जाता है, तो आईये जानते हैं अश्वकंचुकी रस का कम्पोजीशन, फ़ायदे और इस्तेमाल की पूरी डिटेल -
अश्वकंचुकी रस के कम्पोजीशन बात करें तो इसमें शुद्ध पारा, शुद्ध गंधक, शुद्ध बछनाग, सुहागा फूला, सोंठ, मिर्च,पीपल, शुद्ध हरताल, हर्रे, बहेड़ा, आंवला सभी एक भाग और शुद्ध जमालगोटा बीज तीन भाग में भांगरे के रस की इक्कीस भावना देकर 250 mg की गोलियां बनायी जाती हैं.
अश्वकंचुकी रस तासीर में गर्म है और जमालगोटा मिला होने से तीव्र विरेचक या यानि फ़ास्ट एक्टिंग Laxative भी है. कफनाशक और पाचक गुणों से भरपूर है.
अश्वकंचुकी या घोड़ाचोली रस के फ़ायदे-
पेट और आँतों की सफ़ाई करने और पेट में जमा कचरे को निकालने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है
यह खांसी, जुकाम और बुखार में भी फायदेमंद है, शरीर में बहुत ज़्यादा कफ़ बढ़ जाने से होने वाले रोगों को दूर करता है
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लीवर और स्प्लीन बढ़ जाना,पाचन शक्ति की प्रॉब्लम, गैस, पेट फूल जाना, भूख नहीं लगना जैसी प्रॉब्लम दूर होती है,इसके अलावा पुराना अतिसार, अस्थमा, साँस की तकलीफ, बाल सफ़ेद होना और बाँझपन जैसे रोगों में भी सही अनुपान के साथ लेने से लाभ होता है.
अश्वकंचुकी रस की मात्रा और सेवन विधि -
एक से दो गोली तक दिन में दो बार,या आयुर्वेदिक डॉक्टर की सलाह से
खांसी, कफ़ और दर्द में अद्रक का रस और शहद के साथ लेना चाहिए, बुखार में सहजन की जड़ का काढ़ा और घी के साथ, अपच, पेट की गैस की प्रॉब्लम में छाछ के साथ, लीवर-स्प्लीन बढ़ने पर पुनर्नवा के काढ़े के साथ, बाँझपन में पुत्रजीवक के साथ या फिर रोगानुसार उचित अनुपान से.
यह रसायन औषधि है, इसे आयुर्वेदिक डॉक्टर की सलाह से ही यूज़ करें. इसे आयुर्वेदिक दवा दुकान से या फिर ऑनलाइन खरीद सकते हैं.
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