मकरध्वज के बारे में सभी लोग जानते हैं कि यह ताक़त बढ़ाने वाली दवा है और इसके इस्तेमाल से हर तरह की बीमारी दूर होती है
यह हार्ट और नर्वस सिस्टम पर बहुत जल्दी असर करता है, मकरध्वज के इस्तेमाल से शरीर का वज़न बढ़ता है
आईये सबसे सबसे पहले जानते हैं कि मकरध्वज है क्या चीज़ और मकरध्वज किसे कहते हैं ?
पारा का नाम आपने सुना होगा, इसे अंग्रेजी में Mercury कहते हैं, पारा का आयुर्वेद में महत्वपूर्ण स्थान है
पारा को आयुर्वेदिक प्रोसेस से शुद्ध करने के बाद इस्तेमाल किया जाता है, कच्चा पारा बहुत ही नुकसानदायक होता, जबकि शुद्ध करने के बाद यह रसायन बन जाता है
शुद्ध पारा और शुद्ध गंधक में सोने का वर्क मिलाकर बालुका यंत्र में तीव्र अग्नि देने के बाद मकरध्वज का निर्माण होता है
रस सिन्दूर में स्वर्ण भस्म या सोने का वर्क मिलाने पर भी मिश्रण को मकरध्वज कहा जाता है
अब आप सोच रहे होंगे कि रस सिन्दूर क्या है?
यहाँ मैं बता देना चाहूँगा कि रस सिन्दूर का रिश्ता उस सिन्दूर से दूर-दूर तक नहीं है जिसे महिलाएं अपनी माँग में डालती हैं, इसीलिए कंफ्यूज न हों
शुद्ध पारा और शुद्ध गंधक को जब आयुर्वेदिक प्रोसेस से बालुका यन्त्र में अग्नि दिया जाता है तो उसके बाद प्राप्त होने वाला पदार्थ रस सिन्दूर कहलाता है
रस सिन्दूर भी एक चमत्कारी औषधि है जिसे आयुर्वेदिक चिकित्सक सफलतापूर्वक प्रयोग करते हैं
असली मकरध्वज क्या है और इसे कैसे बनाया जाता है?
यहाँ मैं बता रहा हूँ रस तरंगिणी में बताया गया मकरध्वज बनाने का तरीका -
सोने का वर्क 10 ग्राम, शुद्ध पारा 80 ग्राम और शुद्ध गंधक 160 ग्राम ले लीजिये
अब शुद्ध पारा को खरल में डालकर उसमे थोड़ा-थोड़ा सोने का वर्क मिलाते हुवे घोटें, जब पूरा सोने का वर्क घुट जाये तो थोड़ा-थोड़ा शुद्ध गंधक मिलाकर घोटना चाहिए
सब मिल जाने के बाद रोज़ 6-7 घंटा 7-8 दिनों तक घोटना है, इसके बाद ग्वारपाठा का रस ताज़ा निकाल कर इसे मिलकर घुटाई करें और फिर लाल कपास के फूल के रस में भी घोटना है
इसी तरह से 1-2 दिन तक ग्वारपाठा और लाल कपास के फूल के रस में घोटने के बाद सुखा कर सात बार कपरौटी की हुयी आतशी शीशी में भरकर बालुका यंत्र में रखकर 24 घंटे तक मृदु, मध्य और तीव्र आँच देना है
पूरी तरह से ठंडा होने पर शीशी के गले में लगा हुवा लाल मकरध्वज निकाल कर रख लिया जाता है
जबकि शीशी के तली में मिलने वाला सोने का भस्म को अलग काम में यूज़ किया जाता है
तो यह है मकरध्वज बनाने का आयुर्वेदिक प्रोसेस
असली मकरध्वज की पहचान -
जो मकरध्वज कड़ा न हो, अंगुली से हल्का दबाने पर ही टूट जाये, जिसका चूर्ण रवेदार हो, चमकदार और स्मूथ दीखता हो वही असली और बेस्ट मकरध्वज होता है
पिछले एक विडियो में मैंने बताया था दिव्य मकरध्वज के बारे में, दिव्य वाले तो इसे पिसा हुवा पैक करते हैं, जबकि बैद्यनाथ का रवेदार यानि क्रिस्टल की तरह मिलता है
आईये अब जानते हैं कि सिद्ध मकरध्वज क्या है ?
अभी जो मैंने मकरध्वज का प्रोसेस बताया है उसमे सोने का वर्क 10 ग्राम लेने को कहा है, अगर सोने के वर्क को 40 ग्राम लिया जाये और बाकी चीज़ और प्रोसेस सेम हो तो इसके बाद तैयार होने वाला मकरध्वज सिद्ध मकरध्वज कहलाता है
शास्त्रों के अनुसार सबसे पहले भगवान शंकर ने इसे बनाकर सिद्धों को इसका सेवन करवाया था, इसीलिए इसे सिद्ध मकरध्वज कहा जाने लगा
यह सबसे बेस्ट महौषधि है, इसके जैसे सर्व-रोगनाशिनी यानि सारी बीमारियों को दूर करने वाली दवा दुनिया के किसी भी पैथी में नहीं है, यह बात बड़े-बड़े डॉक्टर भी मान चुके हैं कि इसके जोड़ की दवा दुनिया के किसी भी चिकित्सा में नहीं है
कहते हैं कि मरने वाले आदमी को भी अगर मकरध्वज खिला दिया जाये तो कुछ मिनट तक बच जाता है
बच्चों से लेकर बूढों तक में फायदा करने वाली यह बेजोड़ दवा है, यह कितना असरदार दवा है आप इस बात से ही समझ सकते हैं कि जब मरने वाले को भी यह असर करती है तो साधारण, साध्य और कष्टसाध्य रोगों में इसका क्या प्रभाव होगा
किसी भी कारण से शरीर में कमज़ोरी आ जाने पर या फिर खून की कमी हो जाने पर मकरध्वज के इस्तेमाल से बहुत तेज़ी से फायदा होता है
यह कफ़ दोष के कारण होने वाली बीमारीओं को बहुत जल्दी दूर करता है, हार्ट की कमजोरी दूर कर हार्ट को मज़बूत बनाता है, शरीर से बैक्टीरिया का नाश करता है, स्पर्म को Healthy बनाता है, वीर्य गाढ़ा कर शीघ्रपतन, नपुंसकता इत्यादि को दूर करता है
मकरध्वज को खरल करने के बाद यह लाल रंग का पाउडर की तरह होता है, इसकी मात्रा और सेवन विधि रोग और रोगी के अनुसार होनी चाहिए
व्यस्क व्यक्ति इसे 125 मिलीग्राम तक दिन में दो बार शहद मलाई या उचित अनुपान के साथ ले सकते हैं
मकरध्वज के इस्तेमाल से कई सारी दूसरी आयुर्वेदिक दवा भी बनाई जाती है जैसे मकरध्वज गुटिका, मकरध्वज वटी, मकरध्वज रसायन इत्यादि
यहाँ मैं बताना चाहूँगा मकरध्वज वटी के बारे में, जो की प्रचलित है और सबसे ज्यादा इस्तेमाल भी की जाती है
तो आईये सबसे पहले जान लेते हैं कि मकरध्वज वटी को कैसे बनाया जाता है?
इसके लिए मकरध्वज,कपूर, जायफल और कालीमिर्च(छिल्का निकाली हुयी) प्रत्येक 20 ग्राम और कस्तूरी 2 ग्राम लेना होता है
जायफल और काली मिर्च का बारीक चूर्ण कर उसमे बाक़ी सारी दवा अच्छी तरह से मिलाकर खरल करें और पान के रस की भावना देकर ख़ूब घुटाई कर 2-2 रत्ती या 250 mg की गोलियां बनाकर सुखा कर रखा जाता है, यही मकरध्वज वटी कहलाती है
आयुर्वेदिक ग्रन्थ भैषज्यरत्नावली में इसे 'वृहचंद्रोदय मकरध्वज' कहा गया है
आज के समय में कस्तूरी दुर्लभ होने की वजह से इसमें कस्तूरी की जगह पर केसर या लता कस्तूरी जैसी चीजें मिलाकर बनाया जाता है
मकरध्वज वटी का डोज़ और इस्तेमाल करने का तरीका-
1-1 गोली दिन में 2 बार शहद, मक्खन, मलाई या दूध के साथ
मकरध्वज वटी के फ़ायदे-
हर तरह के रोग में इसे अलग-अलग अनुपान के साथ लेकर फायदा उठाया जा सकता है
यह त्रिदोष नाशक है, मतलब इसके इस्तेमाल से वात, पित्त और कफ़ तीनों दोषों के कारन होने वाले रोग दूर होते हैं
इसका सबसे ज्यादा असर हार्ट, ब्रेन, वात वाहिनी और शुक्र वाहिनी नाड़ीयों पर होता है
इसके इस्तेमाल से वीर्य विकार, शुक्र विकार, लिंग की कमजोरी, ढीलापन इत्यादि दूर होते हैं
इसके इस्तेमाल से प्रमेह, शीघ्रपतन, वीर्य का पतलापन, इरेक्टाइल डिसफंक्शन जैसी प्रॉब्लम दूर होती है
यह एक उत्तम पुष्टिकारक, स्तम्भन शक्ति बढ़ाने वाली और नपुँसकता दूर करनेवाली बेस्ट दवा है, यह शरीर में बल, वीर्य और ओज की वृद्धि करती है
मकरध्वज वटी आयुर्वेदिक मेडिकल में मिल जाती है, डाबर बैद्यनाथ जैसी आयुर्वेदिक कंपनियां इसे बनाती हैं. ऑनलाइन ख़रीदने के लिए
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