आज मैं बताऊंगा आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के बारे में, क्योंकि बहुत से लोग इसके बारे नहीं जानते हैं
अगर आयुर्वेद शब्द के अर्थ या मीनिंग की बात करें तो आयु मतलब लाइफ या जीवन और वेद का मतलब होता है ज्ञान
मतलब जीवन का ज्ञान स्वस्थ रहने के लिए
आयुर्वेद में हमें सिखाता है कि स्वस्थ जीवन कैसे जिया है, कैसा आहार विहार किया जाये जिस से कि हम बीमार न पड़ें. आपको शायेद पता न होगा कि हमारा आहार-विहार मतलब खाना पीना और रहने सहने का तरीका ही बीमारी का मुख्य कारण होता है
अगर आप सही खान-पान करेंगे और सही से तरीक़े से रहेंगे हो बीमार नहीं पड़ सकते
इसी लिए जब आप आयुर्वेदिक दवा खाते हैं तो आयुर्वेदिक डॉक्टर कुछ परहेज़ भी बताते है
परहेज़ वो चीज़ होता है जो बीमारी को बढ़ाता है या फिर बीमारी का कारण होता है
और जब हम बीमार पड़ जाते हैं तो आयुर्वेद हमें प्राकृतिक जड़ी बूटियों के सहारे बीमारी को दूर करने का उपाय बताता है, जिसे आयुर्वेदिक औषधि कहते हैं
चरक संहिता के एक श्लोक में कहा गया है -
"आयुर्वेदस्य प्रयोजनं स्वस्थस्य स्वास्थ्य रक्षणं आतुरस्य विकास प्रशमनं च"
इसका मतलब है कि आयुर्वेद का प्रयोजन या उद्देश्य स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ की रक्षा करना है और रोगी व्यक्ति के रोग को दूर करना है
आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति का जन्म हमारे देश भारत में हुवा है आज से हजारों साल पहले
धन्वन्तरी |
आयुर्वेद का जनक 'धन्वन्तरी' को कहते हैं और ऐसा माना जाता है कि धन्वन्तरी भगवान विष्णु के अवतार हैं
धन्वन्तरी के बाद कई सारे ऋषि महर्षि हुवे हैं जिन्होंने आयुर्वेद को आगे बढ़ाया है जिनमे चरक, शुश्रुत, शारंगधर इत्यादि प्रमुख हैं
इन ऋषियों ने अपने समय में अपने अपने आयुर्वेदिक नुस्खे लिखे थे जो इनके नाम की किताबों में वर्णित हैं
जैसे महर्षि चरक ने 'चरक संहिता' नाम की किताब लिखी, इसी तरह महर्षि शुश्रुत ने 'शुश्रुत संहिता' नाम की किताब लिखी और शारंगधर ऋषि ने 'शारंगधर संहिता' लिखी है
इनमे से कुछ धन्वन्तरी के चेले भी हैं जिन्होंने धन्वन्तरी के बताये फ़ार्मूले को नोट किया था.
इन्ही सारी किताबों के फ़ार्मूले से बनायीं गयी दवाएं शास्त्रीय औषधियाँ कही जाती हैं.
यहाँ मैं एक बात और बताना चाहूँगा कि आयुर्वेद की सारी प्राचीन ग्रन्थ 'संस्कृत' भाषा में लिखी गयी हैं और दवाओं के फ़ार्मूले और जानकारी अधिकतर श्लोक के रूप में हैं
जब तक आपको संस्कृत का अच्छा ज्ञान न हो, इसे नहीं समझ सकते
आयुर्वेद मतानुसार शास्त्रीय औषधियाँ कभी फेल नहीं होतीं, क्योंकि इसे डायरेक्ट ब्रह्मा अवतार धन्वन्तरी ने बताई हैं
ब्रह्मा जी की लकीर की तरह यह तब से आज तक वैसा असर करती हैं
ज़रा सोचिये, यही फर्क है आयुर्वेद और Allopath में, उदाहरण के लिए 'योगराज गुगुल' आयुर्वेद की एक दवा है जो कि हज़ारों साल से काम कर रही है और काम करती रहेगी
जबकि एक अंग्रेज़ी दवा कि बात करें तो रिसर्च से एक दवा निकलकर आती है कुछ साल प्रयोग किया जाता है और फिर नया रिसर्च कहता है कि इसका प्रयोग न करें इसे कैंसर होता है
और फिर वह दवा बैन कर दी जाती है क्योंकि फ़ायदे के अलावा नुकसान करने लगती है
जहाँ तक मेरी जानकारी है कोई भी ऐसी अंग्रेज़ी दवा नहीं है जिसका साइड इफ़ेक्ट न हो
बहुत ही कॉमन दवा पेरासिटामोल को ही ले लीजिये, यह Analgesic है दर्द को कम करती है, बुखार कम करती है
पर इसका साइड इफ़ेक्ट लीवर पर होता है और लीवर डैमेज कर सकती है
जबकि आयुर्वेद की साधारण दवा योगराज गुगुल को देखिये, इसे आप सालों साल खा सकते हैं बिना किसी साइड इफ़ेक्ट के और यह शरीर के सभी अंगों को सही कर देती है
तो आप समझ सकते हैं अंग्रेज़ी दवा और आयुर्वेदिक दवा में क्या फर्क है
यहाँ मैं बताना चाहूँगा कि मैं एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति के खिलाफ नहीं हूँ, इसका भी अपना महत्त्व है, बस मैं फर्क बता रहा हूँ
आयुर्वेद से ही मिलती जुलती यूनानी चिकित्सा पद्धति है जो आयुर्वेद की ही तरह जड़ी-बूटी और खनिज लवणों पर आधारित है पर इसका उत्पत्ति स्थान यूनान या आज का ईरान देश है
होमियोपैथिक भी जड़ी-बूटी और मिनरल पर आधारित है पर इसका सिद्धांत आयुर्वेद और यूनानी से बिल्कुल अलग है
हर चिकित्सा पद्धति का एक सिद्धांत होता है और आयुर्वेद त्रिदोष के सिद्धांत पर काम करता है
त्रिदोष मतलब तिन दोष जो हैं कफ़, पित्त और वात या वायु
जब ये तीनों बैलेंस रहते हैं तो शरीर में कोई बीमारी नहीं होती और अगर इनमे से कोई भी कम या ज़्यादा हो जाता है तो आदमी बीमार हो जाता है
इसी कफ़, पित्त और वायु को ध्यान में रखते हुवे ही आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति काम करती है
और इसी के अनुसार आयुर्वेदिक चिकित्सक रोग और रोगी के अनुसार दवाएं देते हैं
मोटे तौर पर त्रिदोष के हिसाब से आप ख़ुद भी समझ सकते हैं कि आपको किस दोष की बीमारी है जैसे-
खांसी-सर्दी, अस्थमा, साँस की बीमारी वगैरह कफ़ दोष की वजह से होती है
पित्त दोष की वजह से हाथ पैर में जलन या शरीर में कहीं भी जलन होना, एसिडिटी या अम्लपित्त, दाह, पीलिया जौंडिस वगैरह
और वात या वायु विकार के कारण दर्द वाले सारे रोग होते हैं जैसे गठिया, जोड़ों का दर्द, साइटिका, कमर दर्द या कोई भी दर्द हो
मतलब अगर संक्षेप में कहूँ तो कफ़ दोष के बिना खांसी नहीं होगी, पित्त दोष के बिना जलन नहीं होगा और वात दोष के बिना दर्द नहीं होगा
आदमी की शारीरिक बनावट से भी प्रकृति का पता चलता है
यहाँ एक बात और बता दूं कि कई सारी बीमारी में दो दोष या तीनों दोष भी कुपित हो जाते हैं जिसका पता हम लक्षण और नाड़ी ज्ञान से करते हैं
आपने देखा होगा कि जब भी आप किसी वैध जी या आयुर्वेदिक डॉक्टर के पास जाते हैं तो वे आपकी नाड़ी या नब्ज़ पकड़ कर ज़रूर देखेंगे
नाड़ी से पता लगाया जाता है कि रोगी किस प्रकृति का है और कौन कौन से दोष बढ़े हुवे हैं
नाड़ी ज्ञान के अनुभवी वैध आपसे बिना पूछे आपकी सारी बीमारी बता सकते हैं सिर्फ़ आपकी नब्ज़ पकड़ कर, मुझे भी इसका थोड़ा अनुभव है
जब शरीर में तीनों दोष कुपित हो जाते हैं तो भयंकर बीमारी होती है जो कि आसानी से ठीक नहीं होती, एक दो दोष कुपित होने वाली बीमारी जल्दी ठीक हो जाती है
आयुर्वेदिक दवाओं के प्रयोग से रोग का मूल कारण को नष्ट किया जाता है, मतलब आयुर्वेदिक दवा से रोग जड़ से ठीक होता है
जबकि अंग्रेज़ी दवा में ऐसा नहीं है
For example -
अगर आपको बवासीर हुयी हो तो ऑपरेशन करवा लीजिये, फिर कुछ महीनों बाद आपको दुबारा बवासीर हो सकती है
और अगर आपने किडनी या ब्लैडर की पत्थरी के लिए ऑपरेशन करवाया हो तो दुबारा पत्थरी हो जाना आम बात है
जानते हैं क्यों?
ऑपरेशन से पत्थरी निकाल देना तत्काल समाधान है और रोगी को राहत भी होती है पर पत्थर बनने का कारण को आयुर्वेदिक दवा ही जड़ से मिटाती है
ऑपरेशन, चिर-फाड़ और सर्जरी के लिए अलोपथिक चिकित्सा पद्धति के महत्त्व को इंकार नहीं किया जा सकता
पर क्या आप जानते हैं कि सर्जरी के जनक महर्षि शुश्रुत ही हैं जिनका नाम मैंने कुछ देर पहले बताया है
महर्षि शुश्रुत ने हजारों साल पहले मोतियाबिंद का सफल ऑपरेशन किया था वो भी कब जब न तो धातु के आधुनिक औज़ार थे और न ही ऑपरेशन थिएटर
इसीलिए ऐलोपैथ वाले भी मानते हैं महर्षि शुश्रुत को फ़ादर ऑफ़ सर्जरी
आयुर्वेद में सही खान-पान पर बहुत जोर दिया गया है बताया गया है कौन सी चीज़ को कम खाना चाहिए, कौन सी चीज़ को ज़्यादा खाना चाहिए
कौन सी चीज़ को रात में नहीं खाना चाहिए, कौन सी चीज़ को कुछ चीजों के साथ मिलाकर नहीं खाना चाहिए वगैरह वगैरह
यहाँ पर एक और महत्वपूर्ण बात बताना चाहूँगा कि हमारे देश के ही कुछ लोगों ने आयुर्वेद के नाम को बदनाम किया है
ये वो लोग हैं जो दो - चार जड़ी बूटी को जानकर ख़ुद को आयुर्वेदिक डॉक्टर कहते हैं और लोगों को उलटी सीधी सलाह देकर आयुर्वेद को बदनाम करते हैं
ऐसे लोगों को न तो आयुर्वेद का कुछ ज्ञान होता है न रोग का, बस लोगों को मुर्ख बनाकर उनसे पैसे लेते हैं, ऐसे लोगों से सावधान रहना चाहिए
दो दोस्तों, ये है आयुर्वेद और इसका का महत्त्व. संक्षेप में मैंने आज आयुर्वेद के बारे बताया, आयुर्वेदिक औषधियों की Category और प्रकार के बारे में किसी दुसरे विडियो में बताऊंगा
Watch here its video
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