च्यवनप्राश आयुर्वेद की पोपुलर औषधियों में से एक है जो अपने गुणों के कारण प्रचलित है.
50 से ज्यादा जड़ी-बूटी और खनिज के मिश्रण से बनने वाली यह दवा शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता को बढ़ाता है. यह बच्चों और बड़ों सभी के लिए एक बेहतरीन टॉनिक की तरह काम करता है.
च्यवन एक ऋषि का नाम है और प्राश मतलब हलवा, यह च्यवन ऋषि का फ़ार्मूला है इसलिए इसका नाम च्यवनप्राश रखा गया है जो की चरक संहिता में वर्णित है.
महर्षि च्यवन इस दवा को खाकर बुढ़ापे में भी जवान हो गए थे और सुन्दर कन्या से विवाह रचाया था.
च्यवनप्राश के फ़ायदे-
किसी भी वजह से होने वाली शारीरिक और मानसिक कमज़ोरी को दूर कर शरीर को हृष्ट-पुष्ट बना देता है. इसका प्रभाव रस-रक्तादी सातों धातुओं, ह्रदय, मस्तिष्क, नर्वस सिस्टम, पाचन तंत्र, और इन्द्रियों पर विशेष रूप से होता है.
टीबी, खांसी, अस्थमा, रक्तपित्त, अम्लपित्त, पांडू, कामला, हलीमक, उन्माद, अपस्मार, यादाश्त की कमी, हार्ट डिजीज, धातुक्षीणता, सीमेन प्रॉब्लम, प्रमेह इत्यादि दोष नष्ट करता है.
स्त्रियों के गर्भाशय दोष और पुरुषों के वीर्य-दोष को मिटाकर उनको सन्तान उतपन्न करने योग्य बनाता है.
च्यवनप्राश के इस्तेमाल से खांसी, अस्थमा, आवाज़ बैठना, हार्ट प्रॉब्लम, पाचन रोग, छाती के रोग, गठिया, प्यास, मूत्र रोग, वीर्य दोष, बुढ़ापा, पुराना बुखार, बीमारी के बाद की कमज़ोरी इत्यादि दूर होता है.
यह एंटी एजिंग और स्वास्थ्य सुधारने वाला बेहतरीन टॉनिक है
शरीर की इम्युनिटी पावर को बढ़ाता है
वात और कफ़ को दूर करता है, खाँसी, दुर्बलता, वीर्य विकार को दूर करता है
च्यवनप्राश का डोज़ और इस्तेमाल का तरीका-
1 से दो चम्मच सुबह शाम शहद या गर्म दूध के साथ
च्यवनप्राश बना बनाया मार्केट में मिल जाता है. फिर भी अगर आप बनाना चाहें और अगर बनाने की क्षमता हो तो बना सकते हैं. इसकी निर्माण विधि इस प्रकार है-
बेल की छाल, अरणीमूल, सोनापाठा(अरलू) छाल, गम्भारी छाल, पाटला छाल, मुदगपर्णी, माषपर्णी, शालीपर्णी, प्रिशिनपर्णी, पीपल, गोखरू, छोटी-बड़ी कटेरी, काकड़ासिंघी, भूमि आंवला, मुनक्का, जीवंती, पुष्करमूल(कुठ), अगर, गिलोय, बड़ी हर्रे, खरेंटी पंचांग, ऋद्धि-वृद्धि(दोनों के आभाव में बाराहीकंद), जीवक, ऋषभक(दोनों के आभाव में विदारीकन्द), कचूर, नागरमोथा, पुनर्नवा, मेदा, महा मेदा(दोनों के आभाव में शतावरी), इलायची, कमल का फूल, सफ़ेद चन्दन, विदारीकन्द, अडूसा की जड़, काकोली, क्षीरकाकोली(दोनों के आभाव में असगंध) और काकनासा प्रत्येक 50 ग्राम लेकर मोटा मोटा कूट लें और 16 लीटर पानी में क्वाथ बनायें
ताम्बे के कलाईदार बर्तन या स्टेनलेस स्टील के बर्तन में काढ़ा बनाना है. जब चार लीटर पानी बचे तो छान कर रख लें.
ताज़ा हरा आँवला 7.5 किलो लेकर 8 लीटर पानी में पकाएं,जब आँवला पक कर सॉफ्ट हो जाये और हाँथ से मसलने लायक हो जाये तो उतार कर बांस की टोकरी में डाल कर छान लें
इसके बाद आँवले की गुठली अलग कर पिस लें और चटनी की तरह बना लें, बिना पानी मिलाये
अब इस पिसे हुवे उबले आँवले के पेस्ट को कड़ाही में डाल कर 700 ग्राम देशी गाय की घी मिलाकर हल्की आंच पर भून लें, और जब अच्छी तरह भून जाये और घी अलग होने लगे तो उतार कर रख लें, लकड़ी के चूल्हे पर बनाना अच्छा रहता है
इसके बाद दुबारा कड़ाही चढ़ा कर उसमे पहले का छना हुवा क्वाथ डालकर 10 किलो चीनी और 'केशर' 15 ग्राम मिलाकर चाशनी बनायें
जब चाशनी अवलेह योग्य गाढ़ी हो जाये तो उसमे आँवले का पेस्ट जो पहले से तैयार कर रखा है उसे मिला कर कलछी से चलाते रहें. ध्यान रहे धीमी आंच रखें ताकि जले नहीं.
जब हलवा की तरह तैयार हो जाये तो उतार लें, कुछ ठंडा होने पर इसमें पीपल 100 ग्राम, दालचीनी, छोटी इलायची, तेजपात और नागकेशर प्रत्येक 5-5 ग्राम और लॉन्ग 25 ग्राम का बारीक चूर्ण मिला लें और चीनी मिटटी के बर्तन में रख लें. यह नार्मल च्यवनप्राश है.
अगर स्पेशल च्यवनप्राश बनाना हो तो इसमें और ये सब मिला सकते हैं - बंशलोचन और शुक्ति भस्म प्रत्येक 80 ग्राम, अभ्रक भस्म और श्रृंग भस्म प्रत्येक 100 ग्राम, मकरध्वज बारीक खरल किया हुवा 25 ग्राम और चाँदी का वर्क 75 पिस अच्छी तरह मिला कर रख लें. यह स्पेशल च्यवनप्राश नार्मल च्यवनप्राश से बहुत ज़्यादा गुणकारी है और बहुत जल्द असर करता है और स्थाई लाभ होता है.
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अगर आप कम मात्रा में बनाना चाहें तो बताई गयी मात्रा के हिसाब से कम अनुपात में बना सकते हैं. ख़ुद से बनाया च्यवनप्राश मार्केट में मिलने वाले च्यवनप्राश से कई गुना अच्छा होता है.
तो दोस्तों, आज आपने जाना च्यवनप्राश के फ़ायदे और बनाने का तरीका के बारे में.
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