गोक्षुर या गोखरू मुख्यतः दो तरह का होता है, छोटा गोखरू और बड़ा गोखरू एक और होता है जिसे जंगली गोखरू भी कहते हैं.
गोक्षुर या गोखुरू के नाम –
संस्कृत में – गोक्षुर, श्वदंशट्रा, स्वादुकंटक, त्रिकंटक, चणद्रुम, इक्षुगन्धिका
हिन्दी में – गोखरू, हरचिकार, मीठा गोखरू
गुजराती – न्हाना गोखरू, बेठा गोखरू
बंगला – गोक्षुर, गोखरी
पंजाबी में – भखड़ा, लोटक
राजस्थानी में – गोखरू
तमिल में – नेरूनजि
तेलगु में – पान्नेरुमुल्लू
कन्नड़ में – सन्ना नेग्गुलू
फ़ारसी में – खोरखसक ख़ुर्द, खारे सह्गोशा
अरबी में – हसक
अंग्रेज़ी में – लैंड कैलट्रापस(Land Caltrops), Puncture Vine और
लैटिन में – ट्रीबुलस टिरेस्टिरस(Tribulus Terrestris) कहा जाता है.
यूनानी मत- हकीम लोग इसे गरम और ख़ुश्क मानते हैं. यह बस्ती और गुर्दे की पत्थरी को नष्ट करता है. पेशाब की रुकावट की बेहतरीन दवा है, सुज़ाक में भी असरदार है.
होम्योपैथी के मतानुसार – डॉक्टर विलियम बोरिक कहते हैं कि पेशाब के रास्ते की रुकावट, वीर्यस्राव, प्रोस्टेट ग्लैंड की सुजन और दुसरे यौन रोगों में गोखुरू टिंक्चर दस से बीस बूंद तक रोज़ दो तीन बार लेने से फ़ायदा होता है.
आयुर्वेदानुसार गोक्षुर के गुण –
रस – मधुर,
गुण– गुरु, स्निग्ध
वीर्य – शीत यानी तासीर में ठंडा
विपाक– मधुर
दोषकर्म– वात-पित्त शामक
प्रभाव – मूत्रल, वृष्य
प्रयोज्य अंग – इसका पञ्चांग और फल ही सबसे ज़्यादा यूज़ किया जाता है. इसका फूल और जड़ भी उपयोग किया जाता है.
प्राप्ति स्थान- राजस्थान, उत्तर प्रदेश और बिहार के अलावा दुसरे कई प्रदेशों में भी पाया जाता है.
मुख्य योग – गोक्षुरादि चूर्ण, गोक्षुरादि गुग्गुल और गोक्षुर पाक जैसी शास्त्रीय दवाओं का यह मुख्य घटक होता है.
साइड इफेक्ट्स – अधीक मात्रा में सेवन करने से स्प्लीन और किडनी को नुकसान हो सकता है और कफ़ दोष वाले रोग बढ़ सकते हैं.
गोक्षुर के कई सारे प्रयोग हैं जिसे दो भाग में बाँट सकते हैं बाह्य प्रयोग और आंतरिक प्रयोग. सबसे पहले जानते हैं एक्सटर्नल यूज़ वाले प्रयोग –
1. मूत्राघात – गोक्षुर के फल और ढ़ाक के फूल को पानी के साथ पीसकर पेडू पर लेप करना चाहिए.
गोक्षुर, कलमीशोरा और चूहे की मेंगनी को पीसकर लेप करना चाहिए.
2. मूत्रकृच्छ – गोक्षुर और मूली के बीजों को पीसकर लेप करना चाहिए
3. इन्द्रलुप्त या गंजापन में – बड़ा गोक्षुर और तिलपुष्प को पीसकर मधु और घृत मिलाकर लेप करना चाहिए
4. शोथ या सुजन में – बड़े गोखरू के पञ्चांग को पीसकर गरम कर लेप करना चाहिए.
5. व्रण या ज़ख्म में – बड़े गोखरू के क्वाथ से ड्रेसिंग और इसके पत्ते का रस लगाने से फ़ायदा होता है.
6. नेत्र रोगों में – बड़े गोखरू के पञ्चांग या पत्तों को पीसकर आँख पर बाँधने से आँखों का लाल होना,आँखों से पानी आना और दर्द मिटता है.
आईये अब जानते हैं आतंरिक प्रयोग या इंटरनल यूज़ के बारे में. गोखरू को सबसे ज़्यादा इंटरनल यूज़ में ही इस्तेमाल किया जाता है. आयुर्वेद में मूत्रकृच्छ, मूत्राघात, पत्थरी और पेशाब की प्रॉब्लम के लिए कई तरह के प्रयोग भरे पड़े हैं, जिनमे से कुछ ख़ास के बारे में यहाँ बता रहा हूँ –
1. मूत्राघात में –
(a) गोक्षुर और इलायची चूर्ण को अनार के रस के साथ लेने से फ़ायदा होता है.
(b) गोक्षुर पञ्चांग और असगंध नागौरी के क्वाथ में घी मिलाकर पीना चाहिए.
(c) गोखुरू, सेंधा नमक, त्रिफला और ककड़ी के बीजों का चूर्ण गर्म पानी से लेना चाहिए.
(d) गोक्षुर और शतावरी के चूर्ण को दूध में उबालकर चीनी मिलाकर पिने से फ़ायदा होता है.
2. मूत्रकृच्छ या पेशाब की जलन और पेशाब की तकलीफ़ में –
(a) गोक्षुर, भूमिआमला और बड़ी इलायची के चूर्ण चीनी और घी मिलाकर सेवन करना चाहिए.
(b) गोखरू और सोंठ के काढ़े को पिने से कफजन्य मूत्रकृच्छ में फ़ायदा होता है.
(c) गोखरू और धनिया का काढ़ा पिने से भी फ़ायदा होता है.
(d) गोक्षुर पञ्चांग और शतावर के काढ़े में शहद और मिश्री मिलाकर पिने से पेशाब की जलन और पेशाब की तकलीफ़ दूर होती है.
(e) गोखरू के क्वाथ में यवक्षार मिलाकर पिने से पेशाब की जलन और पेशाब की तकलीफ़ दूर होती है.
(f) गोक्षुर क्वाथ में कलमी शोरा मिलाकर पिने से भी फ़ायदा होता है.
3. अश्मरी या पत्थरी के लिए-
(a) गोक्षुर, पाषाणभेद, यवक्षार सभी बराबर मात्रा का चूर्ण बनाकर तीन-तीन ग्राम ठन्डे पानी से लेने से फ़ायदा होता है.
(b) गोक्षुर चूर्ण को मधु में मिलाकर चाटें और ऊपर से भेड़ का दूध पियें.
(c) गोक्षुर, एरण्ड के पत्ते, सोंठ और वरुण की छाल का क्वाथ पीना चाहिए.
(d) गोखुरू, एरण्डमूल छाल और तालमखाना को दूध में पीसकर पिने से पत्थरी दूर होती है.
(e) गोक्षुर, यवक्षार और शीतलचीनी चूर्ण को पत्थरचूर के पत्तों के रस के साथ लेने से पत्थरी दूर होती है.
(f) गोक्षुर क्वाथ में यवक्षार और मिश्री मिलाकर हर चार घंटे पर पिने से चार-पाँच दिन में पत्थरी निकल जाती है.
2. यौनशक्ति बढ़ाने, कमज़ोरी और दुबलापन दूर करने के लिए –
(a) बड़ा गोखरू और कौंच के बीज के चूर्ण को मिश्री मिले दूध से लेने से फ़ायदा होता है.
(b) गोक्षुर, तालमखाना, उड़द, कौंच बीज और शतावरी का चूर्ण गाय के दूध से लेने से कमज़ोरी दूर होती है.
(c) गोक्षुर, विदारीकन्द और कौंच के बीज के चूर्ण में बराबर मात्रा में शक्कर मिलाकर धारोष्ण गाय के दूध से सेवन करना चाहिए.
3. रक्त प्रदर –
(a) गोक्षुर, अनारपुष्प और शीतल चीनी तीनों को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण कर इन सब के बराबर मिश्री मिला लें. इस चूर्ण को तीन ग्राम सुबह शाम लेने से रक्त प्रदर या लाल पानी आने की प्रॉब्लम दूर होती है.
(b) गोखरू काँटा 6 ग्राम में 12 ग्राम मिश्री और 12 ग्राम घी मिलाकर खाने से भी फ़ायदा होता है.
4. श्वेत प्रदर, सफ़ेद पानी या ल्यूकोरिया के लिए –
(a) बड़ा गोखरू, बला, आँवला, जामुन और देवदारु का क्वाथ बनाकर सेवन करना चाहिए.
(b) गोखरू और तालमखाना का चूर्ण सेवन करना चाहिए.
(c) गोक्षुर, बड़ी इलायची, सिंघाड़ा, बबूल गोंद और मिश्री मिलाकर इसका चूर्ण शहद और गाय के दूध के साथ लेने से ल्यूकोरिया दूर होता है.
5. गर्भशूल –
(a) गोक्षुर, बड़ी कटेरी, सुगन्धबाला और नीलकमल को दूध में पीसकर पिलाने से चौथे महीने में होने वाला गर्भशूल मिट जाता है.
(b) गोक्षुर, मुलहटी और मुनक्का का काढ़ा पिने से फ़ायदा होता है.
6. शोथ या सुजन होने पर- गोक्षुर, ककड़ी के बीज, पुनर्नवा और सुखी मुली का क्वाथ चीनी मिलाकर पिने से प्रेगनेंसी वाली सुजन दूर होती है.
7. प्रमेह –
(a) गोक्षुर चूर्ण में मिश्री मिलाकर सेवन करना चाहिय
(b) गोक्षुर, आमलकी और गिलोय के चूर्ण में घी और मधु मिलाकर सेवन करना चाहिए
8. शुक्रमेह या धात गिरने पर –
(a) गोक्षुर, तालमखाना, काहू के बीज और सिंघाड़ा सभी को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर इन सब के बराबर पीसी मिश्री मिला लें. अब इस चूर्ण को तीन-तीन ग्राम सुबह शाम दूध से लेने से फ़ायदा होता है.
(b) गोखरू, बीजबन्द, कालीमुसली, सफ़ेदमूसली, कौंच के बीज सामान मात्रा में लेकर चीनी मिलाकर गाय के दूध से लेना चाहिए. इस से शीघ्रपतन में भी फ़ायदा होता है.
(c) गोक्षुर, उटंगन के बीज, कमरकस, शतावरी, समुद्रसोख चूर्ण में चीनी मिलाकर बकरी के दूध से लेना चाहिए
9. स्वप्नदोष में –
(a) बड़े गोखरू के चूर्ण में घी और चीनी मिलाकर सेवन करना चाहिए
(b) गोक्षुर, आँवला और गिलोय के चूर्ण में मिश्री मिलाकर घी के साथ लेना चाहिए.
10. वात रोगों में –
(a) बड़ा गोखरू और सोंठ क्वाथ पिने से आमवात में फ़ायदा होता है.
(b) गोक्षुर, शतावरी, प्रसारिणी, अश्वगंधा, यवानी, पुनर्नवा, सोंठ, बला और हरीतकी का क्वाथ बनाकर पीना चाहिए.
11. नाभि टलने या नाभिभ्रंस – गोक्षुर मूल को रोगी को ख़ुद उखाड़ना चाहिए और नाभि पर बांधना चाहिए.
आईये अब जानते हैं गोखरू के कुछ स्पेशल प्रयोग –
1. पूयमेह या सुज़ाक के लिए –
गोखरू 21 दाने, इलायची 8 दाने और खशखश एक ग्राम कूटकर भीगा दें और रात में ओस में रख दें. सुबह मसलकर छानकर मिश्री मिलाकर ख़ाली पेट पी लें. लगातार 14 दिन तक लेने से सुज़ाक दूर होता है. खाने में केवल दूध-भात लेना चाहिए.
2. ध्वजभंग या शिश्न की शिथिलता या ढीलापन के लिए-
बढ़ा गोखरू और काले तिल 10-10 ग्राम लेकर चूर्ण बनाकर आधा लीटर दूध में उबालें, जब खोया बन जाये तो खा लें. इसे लगातार चालीस दिनों तक इस्तेमाल करने से शिश्न की शिथिलता दूर होती है.
3. गोक्षुर तेल –
गोक्षुर स्वरस 250ml, गाय का दूध 250ml, सोंठ का चूर्ण 50 ग्राम और सफ़ेद तिल का तेल 250ग्राम. सभी को मिलाकर तेल पाक विधि से तेल सिद्ध कर लें. इस तेल को रोज़ 10-15ml दूध के साथ पीना चाहिए. इसकी मालिश से किडनी का दर्द, पेशाब की जलन, लिंग का ढीलापन और नपुंसकता दूर होती है और काम शक्ति भी बढ़ जाती है.
4. सफ़ेद प्रदर की रामबाण औषधि –
गोखरू 100 ग्राम, शीतलचीनी, बबूल गोंद, ईसबगोल भूसी और मोचरस प्रत्येक 25-25 ग्राम और मिश्री 800 ग्राम मिलाकर सभी का चूर्ण बना लें. अब इस चूर्ण को सुबह 3 ग्राम गाय के दूध से और शाम को 3 ग्राम ताज़े पानी से खाने से सफ़ेद पानी आना जिसे श्वेत प्रदर या ल्योकोरिया कहते हैं दूर होता है. बिल्कुल टेस्टेड योग है. गोक्षुर दाना, पाउडर और टेबलेट ऑनलाइन ख़रीद सकते हैं निचे दिए लिंक से –