लम्पी वायरस की आयुर्वेदिक औषधि और उपचार | Ayurvedic Medicine for Lumpy Virus

 

lumpy virus ayurvedic treatment


जैसा कि आप सभी जानते हैं आज के समय लम्पी वायरस के हज़ारों पशुओं की मौत हो रही है. तो आज के विडियो में मैं लम्पी वायरस के लिए सफल आयुर्वेदिक उपचार के बारे में बताने वाला हूँ, तो आईये इसके बारे में सबकुछ विस्तार से जानते हैं. 

लम्पी वायरस क्या है? और इसके क्या लक्षण हैं?

यह एक स्किन डिजीज है जो केप्रीपॉक्स वायरस के कारन होती है. इसके कारन गाय और भैंस के शरीर पर मोटी-मोटी गाँठ होने लगती है. इस से संक्रमित होने पर मवेशी को हल्का बुखार, शरीर पर मोटे-मोटे दाने होना, गिल्टी होना और फिर इसका ज़ख्म में बदल जाना, नाक बहना, मुंह से लार गिरना और दुधारू मवेशी में दूध की कमी होना जैसे लक्षण दिखाई देते हैं. 


चूँकि यह एक संक्रामक रोग है तो पीड़ित पशु को अलग सैनीटाइज़ जगह पर रखना चाहिए ताकि दुसरे मवेशियों में इसका संक्रमण न फैले. फिटकरी के पानी और नीम के पानी से धो सकते हैं, बुखार के लक्षण हों तो नहाना नहीं चाहिए और बारिश के पानी से भी बचाना चाहिए, और संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए धुनी जलाना चाहिए. 

धुनी जलाने के लिए आपको यह चीज़ें चाहिए होंगी – 

हल्दी, नीम की पत्ती, सरसों दाना और अजवायन

इसे पुराने जुट के बोरे में जलाकर धुवाँ देना चाहिए, इस से काफ़ी लाभ होता है और संक्रमण भी नहीं फैलता है. 

जैसा कि आप सभी जानते हैं इस बीमारी में पशुओं के शरीर पर गिल्टियाँ होकर पक कर फूटने लगती हैं तो इसके लिए लगाने के लिए इस तरह से आयुर्वेदिक मलहम बनायें- 

इसे बनाने के लिए आपको चाहिए होगा 

सोना गेरू, मेहँदी पाउडर और गाय का घी मिक्स कर ज़ख्म की ड्रेसिंग कर लगाना चाहिए. 

अब बात खाने वाली आयुर्वेदिक दवा की – 

जैसे ही आप के मवेशी में लम्पी वायरस के लक्षण दिखें तो उसे सबसे पहले दुसरे मवेशियों से अलग-थलग कर यह उपचार दें – 

हल्दी पाउडर 50 ग्राम 

पार्ले जी बिस्कुट 100 ग्राम 

पेरासिटामोल 2 ग्राम(500mg की चार टेबलेट) लेकर आधा लीटर पानी में घोलकर रोज़ दो से तीन बार तक पिलायें

आईये अब जानते हैं लम्पी वायरस की आयुर्वेदिक औषधि, जिसे एक अनुभवी वैद्य जी द्वारा बताया गया है – 

इसके लिए यह सब जड़ी-बूटियाँ चाहिए होंगी – 

हल्दी, सोंठ,अजवायन, बबूल छाल, कुटकी, चोपचीनी, शिरिस, धमासा, लोध्र पठानी, अकोल, बकायन, अमलतास, अर्जुन छाल, गूलर की छाल, असगन्ध और मूर्वा प्रत्येक 50-50 ग्राम 

वासा, अपामार्ग, खैर, इन्द्रजौ, सरपुंखा, इन्द्रायण, मकोय, कांचनार, नीम छाल, शीशम छाल, गिलोय, काकजंघा, भृंगराज, विधारा, सहजन, एरण्डमूल, पाषाणभेद, रास्ना, चिरायता, त्रिफला और गोक्षुर प्रत्येक 100-100 ग्राम लेकर चूर्ण बना लें. 

मात्रा और सेवन विधि –

व्यस्क मवेशी को 50 ग्राम की मात्रा में रोज़ दो से तीन बार तक गुनगुने पानी में घोलकर पीलाना चाहिय. कम उम्र के मवेशी को आधी मात्रा में दें. 

लम्पी वायरस की सभी अवस्थाओं में लाभकारी है. सभी जड़ी-बूटियाँ पंसारी की दुकान से मिल जाएँगी, अपने मवेशी को बचाने के लिए थोड़ी सी मेहनत से इसका निर्माण कर सकते हैं. 

मवेशी को खाने के लिए हरा ताज़ा चारा, निर्गुन्डी के पत्ते, मकोय पंचांग, सहजन के पत्ते, पुनर्नवा के पत्ते, परवल के पत्ते, पीपल के पत्ते इत्यादि देना चाहिए. संक्रमित मवेशी का दूध मनुष्य को सेवन नहीं करना ही उत्तम है.



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