श्वासकुठार रस अस्थमा, खाँसी, ब्रोंकाइटिस, न्युमोनिया, टॉन्सिल्स, स्वाइन फ्लू, साँस की तकलीफ जैसे फेफड़ों के रोगों की क्लासिकल आयुर्वेदिक मेडिसिन है. श्वासकुठार जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है श्वास यानि अस्थमा और कुठार का मतलब कुल्हाड़ी यानि अस्थमा पर कुल्हाड़ी की तरह वार करने वाली दवा है. तो आईये जानते हैं श्वासकुठार रस का कम्पोजीशन, फ़ायदे और इस्तेमाल की पूरी डिटेल -
श्वासकुठार रस जड़ी-बूटी, पारा गंधक और खनिज के मिश्रण से बनाया जाता है. इसके कम्पोजीशन की बात करें तो इसमें -
शुद्ध पारा, शुद्ध गंधक, शुद्ध वत्सनाभ, टंकण भस्म और शुद्ध मंशील प्रत्येक एक-एक भाग, सोंठ और पिप्पली दो-दो भाग और काली मिर्च दस भाग का मिश्रण होता है जिसे पान के पत्ते के रस की भावना देकर बनाया जाता है.
बनाने का तरीका यह होता है कि सबसे पहले सोंठ, मिर्च, पीपल और शुद्ध वत्सनाभ का बारीक कपड़छन पाउडर बनाकर अलग रख लें. शुद्ध पारा और शुद्ध गंधक को खरल कर कज्जली बना लें और टंकण भस्म और मनशील मिक्स कर खरल करें उसके बाद जड़ी-बूटियों का चूर्ण मिलाकर पान के पत्ते के रस में तीन दिनों तक खरल कर एक-एक रत्ती या 125 mg की गोलियां बनाकर सुखाकर रख लें.
श्वासकुठार रस के गुण -
यह तासीर में गर्म होता है, वात और कफ़ नाशक है.
श्वासकुठार रस के फ़ायदे-
इसे अस्थमा के लिए ही ख़ासकर इस्तेमाल किया है, यह साँस की तकलीफ़ और रेस्पिरेटरी सिस्टम के रोगों को दूर करता है.
अस्थमा, पुरानी ब्रोंकाइटिस, खाँसी-सर्दी, न्यूमोनिया, टॉन्सिल्स और स्वाइन फ्लू जैसे रोगों में इस से फ़ायदा होता है.
श्वासकुठार रस के इस्तेमाल से अरुचि और पाचन की समस्या में भी लाभ होता है.
श्वासकुठार रस की मात्रा और सेवन विधि -
एक से दो गोली तक या 125 mg से 250 mg तक शहद या रोगानुसार उचित अनुपान से लेना चाहिए. इसे एक दो महिना से ज़्यादा लगातार नहीं लेना चाहिए.
यह दवा पित्त को बढ़ाती है, पित्त प्रकृति वाले और जिनका पित्त दोष बढ़ा हो उन्हें इसका यूज़ नहीं करना चाहिए. इसमें वत्सनाभ, मनशील जैसी दवा मिली हुयी हैं, इसे रोग और रोगी की कंडीशन के अनुसार सही डोज़ में डॉक्टर की सलाह से ही लेना चाहिए, नहीं तो सीरियस नुकसान भी हो सकता है. बैद्यनाथ, डाबर जैसी कम्पनियों का यह मिल जाता है. बेस्ट क्वालिटी का श्वासकुठार रस ऑनलाइन ख़रीदें हमारे स्टोर lakhaipur.in से - श्वासकुठार रस 100 ग्राम
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