सितोपलादि चूर्ण कफ़ और पेट के रोगों के लिए बेहद असरदार दवा है जिसका इस्तेमाल हजारों सालों से किया जा रहा है
इसके इस्तेमाल से सुखी, गीली खांसी, गले की ख़राश, साइनस, अस्थमा, सर्दी, कफ़, बुखार, साँस की तकलीफ और Bronchitis जैसे रोग दूर होते हैं
आईये सबसे पहले जानते हैं कि इसे कैसे बनाया जाता है -
सितोपलादि चूर्ण शारंगधर संहिता का शास्त्रीय योग है इसमें दालचीनी एक भाग, छोटी इलायची के बीज दो भाग, पिप्पली चार भाग, बंशलोचन आठ भाग और मिश्री सोलह भाग लेकर कूट पिस कर बारीक़ चूर्ण बनाया जाता है
यह चूर्ण बना बनाया मार्केट में भी मिल जाता है कई सारी आयुर्वेदिक कंपनियां इसका निर्माण करती हैं
सितोपलादि चूर्ण के फ़ायदे -
इसके इस्तेमाल से वात-पित्त और कफ़ संतुलित होता है
सर्दी, खांसी, जुकाम और कफ़ को दूर करता है
खांसी चाहे सुखी हो या गीली सभी में यह बेहद असरदार है
Bronchitis, अस्थमा, साइनस, फेफड़ों की कमज़ोरी में इसका इस्तेमाल करना चाहिए
इसके इस्तेमाल से हाथ-पैर की जलन दूर होती है, कमज़ोरी, थकावट को दूर करता है
पाचन शक्ति बढ़ाता है, भूख न लगना, अरुचि, मुंह का स्वाद ख़राब होना, किसी तरह का टेस्ट पता नहीं चलना जैसी प्रॉब्लम को भी दूर करता है
इसके अलावा, टीबी, पुरानी बुखार और पसलियों के दर्द में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है
सितोपलादि चूर्ण का डोज़-
3 से 5 ग्राम तक दिन में तिन बार तक शहद के साथ लेना चाहिए. इसे कभी भी सुखा न खाएं, शहद न मिले तो पानी से गिला कर खाना चाहिए. सुखा चूर्ण फाँकने से सरक जाता है या गले में फंस जाता है बंशलोचन की वजह से
बच्चों को कम मात्रा में शहद के साथ देना चाहिए
हर आयु के लोग इसका इस्तेमाल कर सकते हैं, पूरी तरह से सुरक्षित आयुर्वेदिक दवा है, लम्बे समय तक इस्तेमाल करने से भी कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं होता है
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